Friday, 1 April 2022

मन

 मन


तेरा मन या मेरा मन

चाहे बस ये अपनापन


तन की नाव में

मन इक नाविक/

जाने कौन दिशा ये जाए..!


तन का पिंजरा

मन न जाने/

दूर कहीं ये उड़ना चाहे


तन कठपुतली

मन बाजीगर/

करतब रोज दिखाता जाए


सुलझे शांत धीर धरे मन में

दुनियादारी की उलझन


तहखाने से मन के भीतर

जाने कितने और हैं मन..!


मिट्टी सा कच्चा

निर्मल और सच्चा/

बना रहे ताउम्र

मन तो इक बच्चा..


मन अतरंगी

मन सतरंगी/

इसके वश में दुनिया सारी


मन को जो वश में कर पाए

वही संत और बुद्ध कहलाये..!


-अल्पना नागर



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