मन
तेरा मन या मेरा मन
चाहे बस ये अपनापन
तन की नाव में
मन इक नाविक/
जाने कौन दिशा ये जाए..!
तन का पिंजरा
मन न जाने/
दूर कहीं ये उड़ना चाहे
तन कठपुतली
मन बाजीगर/
करतब रोज दिखाता जाए
सुलझे शांत धीर धरे मन में
दुनियादारी की उलझन
तहखाने से मन के भीतर
जाने कितने और हैं मन..!
मिट्टी सा कच्चा
निर्मल और सच्चा/
बना रहे ताउम्र
मन तो इक बच्चा..
मन अतरंगी
मन सतरंगी/
इसके वश में दुनिया सारी
मन को जो वश में कर पाए
वही संत और बुद्ध कहलाये..!
-अल्पना नागर
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