अनचाही कोशिश
खिलंदड़
वाचाल
बेबाक...,
खिले फूल सी
एक खूबसूरत लड़की/
एक अरसे बाद देखा उसे
नुक्कड़ वाले पीपल के नीचे
किसी अनचाही कोशिश में थी
शायद मुस्कुराने की...!
सोने के गहनों में लिपटी
बेहद चुप चुप..
क्या हुआ इसे ?
ये छुईमुई तो नहीं थी कभी !
चेहरा आज भी चाँद..
मगर इस चाँद की चमक फीकी कैसे !!
ध्यान से देखा आँखों को
गहरे काले घेरे/
घेरों में घिरे बेहिसाब सवाल
अधूरी नींदें और कुछ
अधूरे ख्वाब
ढुलक आये थे
चाँदी जैसी गोल बूँदों में/
गहनों की चमक से पीला पड़ा शरीर
सचमुच पीला फक्क चेहरा !
नज़र पड़ी रक्तिम सिंदूरी ललाट और
एक वजनी मंगलसूत्र पर..
हाँ, सचमुच वजनी !!
कुछ और भी देखा..
सिंदूर की लालिमा
आँखों तक उतर आई थी
अलाव सी शून्य को ताकती
काले बादलों से घिरी
बरसने को आतुर
सिंदूरी आँखें..!
एक अरसे बाद देखा उसे
नुक्कड़ वाले पीपल के नीचे
मन्नत के धागे उतारते हुऐ...
-अल्पना नागर
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