कभी कभी
कभी कभी
दिल चाहता है
दिल न रहे सीने में
कभी कोई बुरी न लगे बात/
रोबोटिक दुनिया में
भावों का न रहे कोई काम..
उधड़े जज़्बात
बेक़ाबू ख़यालात
कहीं न रहे कोई विरोधाभास/
और अगर दिल रहे तो
रहे पूरी दृढ़ता से
कि दिमाग की चालाकियां
न कर पाएं अतिक्रमण रत्ती भर भी/
दिल चाहता है
मुक्त हो जाये पृथ्वी
सभी तरह के कलुषित संक्रमण से..
कंटीली सरहदें मिट जाएं
मानवता की फसल लहलहाए/
कोई स्थान न रहे
तुष्टिकरण और हठधर्मिता के लिए..
नेस्तनाबूद हो जाये
हिटलर मुसोलिनी या जिन्ना के
उत्तराधिकारी संक्रमित विचार/
आकाश की ओर नजर जाए तो
सिर्फ नजर आएं
सूरज चांद सितारे या
बादलों की कलाकृतियां/
खूब झमाझम बरसे
खुशियों की हरियाली सौगात
कि स्वप्न में भी दिखाई न दे
विनाश की आतिशबाजियां
दिल चाहता है
संक्रमण अगर फैले तो सिर्फ
संवेदना और इंसानियत का
कि जहाँ भी नजर जाए
संक्रमित दिखे धरती गगन और जलवायु
उन्मुक्त हँसी और खुशी के फव्वारों से..!
कभी कभी दिल चाहता है
बिना किसी कृत्रिम उपकरण की बैसाखी के
दिल से दिल तक सीधी पहुँचे बात
अहम की दीवारें ढह जाएं
बिचौलिए पूर्वाग्रहों का न रहे कोई काम/
आपका दिल क्या चाहता है..?
-अल्पना नागर
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