Friday 8 April 2022

सफेद चादर के लाल फूल

 सफेद चादर के लाल फूल


मंडप पर फूल बरसाए जा रहे हैं

दूल्हा दुल्हन सदा के लिए एक होने जा रहे हैं

मगर रुकिए..!!

एक होने की प्रकिया पर अभी लगनी है मोहर

प्रतीक्षा में खड़े सामाजिक ठेकेदारों की/

दुल्हन बीए पास है

मगर असली इम्तेहान तो अभी बाकी है..

दुल्हन का चेहरा फक्क

कलेजा धोंकनी सा धक्क..!


कुछ ही क्षणों में लगेगी प्रदर्शनी..

निहायती अंतरंग बनाम सार्वजनिक पलों में

उसे अंकित करने होंगे

रिवाजों की सफेद कोरी चादर पर

कौमार्य के लाल चटख फूल..!!

मानो उसका अब तक का जीवन कुछ नहीं

सिवाय सफेद चादर के..!

उसके आने वाले जीवन में

रंग भरे जाने हैं या नहीं

इसका फैसला करेगी 

यही सफेद चादर और उस पर अंकित

लाल फूल..!


कहीं मैली न हो जाये

धब्बों से बचाया होगा/

न जाने कितनों से छुपाया होगा

अपनों से परायों से

आवारा घूमती धर दबोचती गिद्ध नजरों से/

कितने ही जतन से संभाले रखा होगा

वर्षों तक यौवन की सफेद चादर को

प्रदर्शनी के इस खास दिन के लिए..!


दौड़ रही होंगी लड़कियां

दुनिया के किसी कोने में या फिर

बगल के ही किसी दूसरे छोटे मोटे गांव में/

वो लहरा रही होंगी परचम

दिखा रही होंगी मैदान में दमखम

मगर दुनिया के इस कोने में अभी

वो व्यस्त है

स्वयं को 'खरा माल' सिद्ध करने में..!!


बिल्कुल..एक निर्जीव माल से इंच मात्र भी अधिक जिसकी उपयोगिता नहीं..!

माल 'खरा' तो दी जाएगी उसे इज्जत

आग में तपकर निखरे सोने जितनी/

वरना जलाया जाएगा 'खोटे सिक्के' को

समाज की नैतिक भट्टी में

उड़ेला जाएगा उसके कानों में

हर रोज बदचलन औरत के तानों का

पिघला शीशा..!


दौड़ती भागती 

जमाने संग क़दमताल करती लड़कियों से इतर

उस खोटी लड़की के कदम वहीं रुके हैं/

उसे दिखाई दे रही है

अपने बदन पर लिपटी बेड़ियों सी सफेद चादर/

दूर दूर तक अनेकानेक मंडप

और मंडप के इर्द गिर्द फंदा बनी

अनगिनत सफेद चादर..!

आज बड़े दिनों बाद 

उसकी आँखों से बह निकले हैं

अंगार से सुलगते चटख लाल फूल..!


-अल्पना नागर












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