Thursday, 28 April 2022

उड़ान - कविता

 उड़ान


अक्सर ये देखा गया है

ऊँची उड़ान रखने का माद्दा रखने वाले पंख

रोक दिए जाते हैं..

"बाहर कड़ी धूप है,पंख झुलस जाएंगे,

तूफ़ान की आहट है,पंख भीग जाएंगे,

ऊँचाई पर मंडराते हैं गिद्ध,नोच डालेंगे..!"

ठीक उसी वक्त ठहराव की पीड़ा

होने लगती है घनीभूत,

पीड़ा जो झुलसने,भीगने या नुच जाने के खौफ से कहीं अधिक कष्टकारी है..!


ठहराव के उन मौत समान क्षणों में ही

भीतर ही कहीं जन्म लेती है

शक्तिशाली प्रेरणा

प्रेरणा जो पूरी ताकत के साथ

धकेलती है जंग खाये खौफ़जदा पंखों को

बाहर की ओर,

भारीपन छूटने लगता है

पंख महसूस करते हैं स्वयं को

बेहद हल्का..

और क्यों न करें..यही उनकी प्रकृति है

नियति है,स्वभाव है..!


घने बादलों के बीचोंबीच गुजर कर भी

पंख भीगते नहीं,

अनंत ऊंचाइयों के सूरज को स्पर्श करते पंख

न झुलसते हैं न टकराते हैं,

और गिद्ध..!

वो तो दूर दूर तक दिखाई नहीं देते,

अद्भुत नजारे का साक्षी व्योम

गुंजायमान हो उठता है,

आनंद के वो क्षण आकार लेने लगते हैं

सुंदरतम शाश्वत सुरीले गीतों का..

गीतों में खुलते हैं रहस्य

उन्मुक्त उड़ान की अनंत गाथाओं के

हर गाथा जैसे दोहराती है एक ही बात

उड़ानें पंखों से अधिक

हौसलों से उड़ी जाती हैं,

और आसमान ये बात जानता है..!


-अल्पना नागर


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