Tuesday, 12 April 2022

फंदे

 फंदे


शहर आ गया है दूर तक

लंबे डग भरता हुआ

किसी दैत्य की तरह..

उसकी गिरफ्त में आते जा रहे हैं

खेत खलिहान

खुले मैदान

गांव के गांव/


दैत्य शहर की भुजाओं पर

झूल रहे हैं अनगिनत फंदे

जिनमें फंसी हुई है

किसान की गर्दन/


बिल्डर को हमदर्दी है

अत्यधिक हमदर्दी

उन झूलते हुए ढीले फंदों से !


चांदी की सीढ़ी पर चढ़

वो लगा रहा पूरा जोर

कर रहा हाड़ तोड़ मेहनत

फंदों को और जोर से कसने में..!


-अल्पना नागर


No comments:

Post a Comment