फंदे
शहर आ गया है दूर तक
लंबे डग भरता हुआ
किसी दैत्य की तरह..
उसकी गिरफ्त में आते जा रहे हैं
खेत खलिहान
खुले मैदान
गांव के गांव/
दैत्य शहर की भुजाओं पर
झूल रहे हैं अनगिनत फंदे
जिनमें फंसी हुई है
किसान की गर्दन/
बिल्डर को हमदर्दी है
अत्यधिक हमदर्दी
उन झूलते हुए ढीले फंदों से !
चांदी की सीढ़ी पर चढ़
वो लगा रहा पूरा जोर
कर रहा हाड़ तोड़ मेहनत
फंदों को और जोर से कसने में..!
-अल्पना नागर
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