गड्डमड्ड कथा
देख कर चलिये जनाब
जीवन की राह में
गड्ढे बहुत हैं,
ऊँचे नीचे
सतही गहरे
हर तरह के गड्ढे !
रखो आँखों में
आसमान
मगर पैरों तले जमीन है
भूल न जाना..!
गर भूले तो
लड़खड़ा कर
गिर पड़ोगे,
हँसी का पात्र बनोगे,
तुम असहाय देखोगे
नजर उठाकर कि
कोई हाथ बढ़े
तुम्हारी ओर
मगर आह..!
लोग गुजर जायेंगे
तुम्हारे इर्द गिर्द से..
ठीक वैसे ही जैसे
गुजरती है
आम जन की
फरियाद
मंत्री जी के
अगल बगल से..!
देखना जरा
कुछ खोदे जाते हैं
जानबूझकर
तुम्हारे अपनों द्वारा ही..!
कुछ अपने द्वारा भी..!
दोनों ओर से
निस्संदेह
गिरना तुम्हें ही है..!
ये जो कई परतों का
काला चश्मा
लगाये रहते हो
चेतना पर हरदम
उतारना होगा..!
वरना तैयार बैठे हैं गड्ढे
पलकें बिछाए
बची खुची जिंदगी को
गड्डमड्ड करने के लिए..!
- अल्पना नागर
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14.03.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4400 में दिया जाएगा| चर्चा मंच पर आपकी उपस्थिति चर्चाकारों का हौसला बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबाग
हृदय से आभार आदरणीय🙏🌻🌼
Deleteये जो कई परतों का
ReplyDeleteकाला चश्मा
लगाये रहते हो
चेतना पर हरदम
उतारना होगा..!
वाक़ई मान्यताओं, धारणाओं के जो चश्मे लगाकर इंसान दूसरों को परखता है तो उसे हर जगह विरोध ही नज़र आता है
जी,बिल्कुल सही कहा आपने।समीक्षा के लिए हृदय से आभार 😊💐
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